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कविता

हर चेहरा छला हुआ

मधुकर अस्थाना


आधे घर में ताला
आधा खुला हुआ
लगता है हर चेहरा
घर में छला हुआ।

इस कमरे में
साँप पले
उसमें अँग्रेजी कुत्ते
बरामदे में
लगे हुए हैं
बरैया के छत्ते।
गरम हवा में
तेज जहर है घुला हुआ।

सन्नाटे को चीर
अचानक
यहाँ गूँजती चीखें
मिल जाती हैं
साथ दूध के
घृणा की सीखें
सबके सीने में
जिंदा बम ढला हुआ।

सूखा कुआँ
भयंकर खाई
नकली है तस्कीन
साँस नहीं लेती
खुलकर
आँगन में माह जबीनें
एक-एक दिन जीना
खुद में बला हुआ।


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